तेरे मंदिरों मे अमृत बरसे माँ

तेरे मंदिरों मे अमृत बरसे माँ, तेरे मंदिरों मे अमृत बरसे माँ |
तेरे भक्तों के मन की प्यास बुझी, अब रूह किसी की ना तरसे माँ  ||

भक्ति के सागर मे भक्तो ने आज लगाये गोते |
इस अमृत मे भीग के कागा, हंस है छिन मे होते |
वो लोग बड़े ही बदकिस्मत, जो आज ना निकले घर से माँ ||

नाम के रस की इस धरा मे आत्मा जब है बहती |
जग की नश्वर चीजों की फिर तलब उसे ना रहती |
कहीं और यह मस्ती मिलती नहीं, जो मिलती है तेरे दर से माँ ||

इन छीटों से जन्म जन्म की मैल सभी धुल जाती |
मिट जाता अन्धकार दिलों का आखे है खुल जातीं |
शैतान भी साधू बनते सुने, तेरे नाम की मस्त लहर से माँ ||
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