शुकराना साँवरे तेरा कैसे अदा करूँ,
क्या क्या नही दिया मुझे कैसे बयां करूँ,
हारा हुआ था मैं प्रभु तुमने जीता दिया,
दर दर की ठोकरों से श्याम तुमने बचा लिया,
उपकार तेरा साँवरे कैसे बयाँ करूँ
शुकराना...
ग़म की अंधेरी रात में ये सोचता था मैं,
कैसे कटेगी ज़िंदगी ये पूछता था मैं,
तेरी दया से सावँरे अब मौज मैं करूँ,
शुकराना......
करुणा की तुम हो मूर्ति किरपा की खान हो,
कलयुग के देव साँवरे तुम ही महान हो,
लाखों के लखदातार की मैं वंदना करूँ,
शुकराना.......
ग्यारस की शाम साँवरे चरणों मे तेरे बीते,
जिस दिन भी भूलें नाम तेरा मर जाएं जीते जीते,
है आरज़ू यही 'रसिक' तेरा भजन करूँ,
शुकराना........