दर दर हुये भटको को

दर दर हुये भटको को दर पे तुम भुलाते हो
थक हार के आता है जो सीने से लगाते हो,
दर दर हुये भटको को.......

बस मन में कभी सोचा तुमने है पूरा किया,
जब दिल से माँगा तो पल भर में दे ही दिया,
अब क्या क्या बताओ प्रभु तुम कितना निभाते हो,
थक हार के आता है जो सीने से लगाते हो,
दर दर हुये भटको को.......

जीवन की सुबह तुमसे और राह तुम्ही से है,
ऐसी किरपा गिरधर हर बात तुम्ही से है,
अपनों ने मुँह फेरा तुम नजरे मिलाते हो,
थक हार के आता है जो सीने से लगाते हो,
दर दर हुये भटको को.......

हर एक मुसीबत में तुम को ही पुकारा है,
जब जब मैं गिरने लगा तुम ने ही सम्बाला है,
आकाश के बादल से पानी बरसते हो,
थक हार के आता है जो सीने से लगाते हो,
दर दर हुये भटको को.......
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