होली खेलन आयो रे कान्हा,
राधा क्यों चढ़ के अड़रिया काहे को शरमाये रे,
होली खेलन आयो रे कान्हा,
सुबह सवेरे तुमने उठ कर द्वारे रची रंगोली,
इतराते तुम घूम रहे थे आये गे हम जोली,
मन की मुराद तेरी हुई पूरी हम जोली आये,
होली खेलन आयो रे कान्हा,
घेर खड़ी कान्हा को गोपी देख तेरे बरसाने की,
लेकिन साद कान्हा केवल तुम्हे ही रंग लगाने की,
काहे को तड़पे तू भी बावरी कहे उसे तड़पाये रे,
होली खेलन आयो रे कान्हा...
एक वर्ष तू जिसको तरसे होली है ये होली,
आज भी तुम शरमाती रहे तो होली तो फिर होली,
बाहर निकल के देख सांवरियां बैठी आस लगाये,
होली खेलन आयो रे कान्हा