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सरस किशोरी

सरस किशोरी, वयस कि थोरी, रति रस बोरी, कीजै कृपा की कोर।
साधन-हीन, दीन मैं राधे, तुम करुणामइ प्रेम-अगाधे,
काके द्वारे, जाय पुकारे, कौन निहारे, दीन दुखी की ओर।
करत अघन नहिं नेकु अघाऊँ, भरत उदर ज्यों शूकर धावूँ ,
करि बरजोरी, लखि निज ओरी, तुम बिनु मोरी, कौन सुधारे दोर।
भलो बुरो जैसो हूँ तिहारो, तुम बिनु कोउ न हितू हमारो,
भानुदुलारी, सुधि लो हमारी, शरण तिहारी, हौं पतितन सिरमोर।
गोपी-प्रेम की भिक्षा दीजै, कैसेहुँ मोहिं अपनी करि लीजै,
तव गुन गावत, दिवस बितावत, दृग झरि लावत, ह्वैहौं प्रेम-विभोर।
पाय तिहारो प्रेम किशोरी!, छके प्रेमरस ब्रज की खोरी,
गति गजगामिनि, छवि अभिरामिनि, लखि निज स्वामिनि, बने 'कृपालु' चकोर ।।

भावार्थ
हे प्रेमरस से युक्त किशोरी जी! हे किशोर अवस्था वाली राधिके! हे प्रेमरस में सराबोर वृषभानुदुलारी! मेरे ऊपर भी कृपा की दृष्टि करो।
हे किशोरी जी! मैं समस्त साधनों से रहित एवं अकिंचन हूँ और तुम अगाध- प्रेम वाली अकारण-करुण हो
फिर हम तुम्हें छोड़कर किसके यहाँ अपना दुःख सुनाने जायें? यदि जायें भी तो मुझ सरीखे अधम की ओर कौन देखेगा?
हे किशोरी जी! निरन्तर पापों को करते हुए मेरा पेट कभी नहीं भरता एवं शूकर की भाँति सदा भटकता हुआ विषय रूपी विष्ठा को ही खोजा करता हूँ।
हे किशोरी जी! तुम्हारे बिना दूसरा कौन है जो अपनी अकारण कृपा से बरबस मेरी बिगड़ी बना दे।
हे वृषभानुनंदिनी! मैं भला-बुरा जैसा भी हूँ तुम्हारा ही तो हूँ। तुम्हारे बिना मेरा हितैषी दूसरा है ही कौन?
हे भानुदुलारी! यद्यपि हम पतितों के सरदार हैं फिर भी अब तुम्हारी शरण में आ गये हैं। हमारे ऊपर कृपा करो।
हे रासेश्वरी! मुझे किसी प्रकार भी गोपी-प्रेम की भीख देकर अपनी बना लो
जिससे मैं तुम्हारे प्रेम में पागल होकर, तुम्हारे गुणों को गाते हुए एवं आँखों से आँसू बहाते हुए अपना जीवन व्यतीत करूँ।
हे किशोरी जी! तुमसे प्रेम प्राप्त करके प्रेम-रस में विभोर होकर मैं ब्रज की गली-गली में दीवाना बनकर डोला करूँ|
सुन्दरता से भी अधिक सुन्दर, मतवाले हाथी के समान चाल वाली अपनी स्वामिनी को देखकर ‘श्री कृपालु जी' कहते हैं कि मेरी आँखें कब चकोर के समान रूपमाधुरी का पान करेंगी?

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