अकेली घेर लई मधुवन में,
श्य़ाम तैने कैसी ठानी रे,
श्य़ाम मोहे वृंदावन जानो लौट कर बरसाने आनो
मेरी कर जौरों की मानो अब होय़ है देर
लड़े घऱ सास जेठानी रे,
इकली घेर लई मधुवन में.......
दान दही को दे जा मोय, ग्वालन तभी जान दऊं तोय
नहीं तकरार बहुत सी होय, जो करि दे इंकार होय तेरी खेंचा तानी रे
इकली घेर लई मधुवन में.......
दान हम कबहुं नही दियो, रोक मेरा मारग काहे लियो
बहुत सो उधम अब ही कियो, आज तक क्या बृज में कोई हुआ ना दानी रे
इकली घेर लई मधुवन में.......
ग्वालन बातें बड़ी बनाये, ग्वाल बालों को लऊँ बुलाय
दाऊँ तेरा माखन अब लुटवाये, इठलावे हर बार बार तोय छाई जवानी रे
इकली घेर लई मधुवन में.......
कंस राजा ते करूँ पुकार, मूशक बाँध दिलवाऊँ मार
तेरी ठकुराई देऊँ निकार, जु्ल्म करे ना डरे तके तू नार वीरानी रे
इकली घेर लई मधुवन में.......
कंस क्या खसम लगे तेरो, मार के कर दूँगा केरो
वाही को जन्म भयो मेरो, करूँ कंस निरवंश
मिटाय दऊँ नाम निशानी रे,
इकली घेर लई मधुवन में.......
इतने में आ गए सब ग्वाल, पड़े आँखन में डोरा लाल
घूम के चलें अदा की चाल ,लुट गई मारग में ग्वालिन
घर को गई खिसियानी रे........