भंगियाँ में डूभ गये हो सुध विसराओ भोला जी,
मैं थक गई भंगियाँ पीसत हाथ दुखायो भोला जी,
भंगियाँ में डूभ गये हो सुध विसराओ भोला जी,
मेवा मिश्री आप के मन को जाने क्यों नहीं भाते,
कंध मूल और फल से क्यों नहीं अपना भूख मिटाते,
क्यों बेल की पत्तियां तेरे मन को भायो भोला जी,
भंगियाँ में डूभ गये हो सुध विसराओ भोला जी,
देवो में तुम महादेव हो फिर क्यों ऐसा करते,
नशा नष्ट कर देता सब कुछ भोले क्यों नहीं डरते,
अब पूजा विनती करती मान भी जाओ भोला जी,
भंगियाँ में डूभ गये हो सुध विसराओ भोला जी,