प्रभु कैसा खेल रचाया है,
ये मेरी समझ नहीं आया है,
प्रभु कैसा खेल रचाया है,
ये मेरी समझ नहीं आया है.....
तूने कैसे तो आकाश बनाये,
तूने कैसे तो आकाश बनाये,
नहीं खंभा एक लगाया है,
ये मेरी समझ नहीं आया है,
प्रभु कैसा खेल रचाया है,
ये मेरी समझ नहीं आया है......
तूने तरह तरह के पेड़ बनाये,
तूने तरह तरह के पेड़ बनाये,
तू बीज कहां से लाया है,
ये मेरी समझ नहीं आया है,
प्रभु कैसा खेल रचाया है,
ये मेरी समझ नहीं आया है......
तूने तरह तरह के फूल खिलाये,
तूने तरह तरह के फूल खिलाये,
तू रंग कहां से लाया है,
ये मेरी समझ नहीं आया है,
प्रभु कैसा खेल रचाया है,
ये मेरी समझ नहीं आया है......
तूने तरह तरह के भोग बनाये,
तूने तरह तरह के भोग बनाये,
तू स्वाद कहां से लाया है,
ये मेरी समझ नहीं आया है,
प्रभु कैसा खेल रचाया है,
ये मेरी समझ नहीं आया है......
तूने तरह तरह के मानुष बनाये,
तूने तरह तरह के मानुष बनाये,
तू जीव कहां से लाया है,
ये मेरी समझ नहीं आया है,
प्रभु कैसा खेल रचाया है,
ये मेरी समझ नहीं आया है......
तूने अलग अलग सब भाग्य बनाये,
तूने अलग अलग सब भाग्य बनाये,
तकदीर कहां से लाया है,
ये मेरी समझ नहीं आया है,
प्रभु कैसा खेल रचाया है,
ये मेरी समझ नहीं आया है......
प्रभु कैसा खेल रचाया है,
ये मेरी समझ नहीं आया है,
प्रभु कैसा खेल रचाया है,
ये मेरी समझ नहीं आया है………