मन के बहुत कुरंग हैं, छिन्न छिन्न बदले सोई,
एक ही रंग में जो रहे, ऐसा विरला कोई l
साधु भया तो क्या भया, माला पहरी चार,
बाहर भेस बनाया, भीतर भरा भंगार l
तन को जोगी सब करे, मन को करे न कोई,
सहजे सिद्धि पाईऐ, जो मन शीतल होई l
मन मैला तन उजरा बगुला कपटी अंग
ता सो तो कऊया भला, तन मन एक ही रंग
अरे नहाए धोए क्या भया, जो मन मैल न जाए,
मीन सदा जल में रहे, पर धोए वास न जाए l
मन न रंगाए, रंगाए जोगी कपरा,
हो मन न रंगाए, रंगाए जोगी कपरा ll
*आस न मारी, मंदिर में बैठे ll
नाम को छाड़ि, पूजन लागे पत्थरा,
मन न रंगाए, रंगाए जोगी कपरा xll
*कनवा फड़ाए जोगी, जटवा बढो ले ll
दाढी बढ़ाई जोगी,हुआ बकरा,
मन न रंगाए, रंगाए जोगी कपरा xll
*जंगल जाए जोगी, धुनियाँ रमौले ll
काम जराए जोगी, हुआ हिजरा,
मन न रंगाए, रंगाए जोगी कपरा xll
*मथवा मुंडाए जोगी, कपड़ा रंगईले ll
गीता बांच के, हुआ लबरा,
मन न रंगाए, रंगाए जोगी कपरा xll
*कहत कबीरा, सुनो भाई साधो ll
यम के दरवाजे, बाँध ले जाए पकरा,
मन न रंगाए, रंगाए जोगी कपरा xll
अपलोडर- अनिल रामूर्ति भोपाल