कैसे लिखू तेरी महिमा की गाथा,
तुम ही बता दो मेरे साई,
सब में तेरा रंग समाया,
सब में साई तेरा ही रूप,
चाहे धरा पाताल गगन हो,
भोर हो रात हो छाव हो धुप,
सृष्टि की हर रचना में है तेरे रूप की ही परछाई,
तुम ही बता दो मेरे साई,
मन अंतर में जब जब जांकू,
तेरी ही सूरत दिख जाती है,
मेरी नजर और भी जाए तेरी किरपा मिल जाती है,
अंदर भी तुम तुम ही बाहर चारो तरफ तेरी करुणाई,
तुम ही बता दो मेरे साई,
शब्दों में गाये नहीं जाए,
और कलम ये हार गई है,
तेरी महिमा कह नहीं पाउ कोशिश सब बेकार रही है,
अपनी महिमा आप ही जानो हम क्या जाने ये गहराई,
तुम ही बता दो मेरे साई,