हर मावस श्याम धनि अभिषेक कराते है,
उस जल से कितने ही प्रेमी तर जाते है,
ये श्याम के मुखड़े को छू कर के निकलते है,
हर बुँदे बाबा से मिलने को मचल ते है,
पल भर में अंगूर अमृत बन जाते है,
हर मावस श्याम धनि अभिषेक कराते है,
अगर प्रेमी हो दुःख में मेरे श्याम भी रोते है,
खुश देख के बच्चो को नैनो को भिगोते है,
सुख दुःख के आंसू भी इस में ही समाते है,
हर मावस श्याम धनि अभिषेक कराते है,
है भावना सच्ची तो इक बार इसी लाना,
मस्तक से लगाना तुम नित नियम से अपनाना,
पीड़ा जितनी भी हो ये दूर भगाते है,
हर मावस श्याम धनि अभिषेक कराते है,
गंगा जल है पावन चन्दन का मिश्रण है,
जिस घर में ये जाए बन जाता मधुवन है,
शिवम इस में नजर श्री श्याम ही आते है,
हर मावस श्याम धनि अभिषेक कराते है,