ऐसी सुना जैसे उस दिन सुनाई थी,
काये की बांसुरियां वो तो काये से बनाई थी,
किस के बो लाल जिस ने गा के सुनाई थी
बांस की बंसुरिया वो तो रत्न जड़ाई थी,
यशोदा के लाल जिसने गा के सुनाई थी,
ऐसी सुना जैसे उस दिन सुनाई थी,
काही की मटुकियाँ वो तो काये भराई सी,
किस के वो लाल जिसने तोड़ के दिखाई थी,
ऐसी सुना जैसे उस दिन सुनाई थी,
माटी की मटुकिया वो तो माखन मलाई थी,
यशोदा के लाल जिसने तोड़ के दिखाई थी,
ऐसी सुना जैसे उस दिन सुनाई थी,
काये की चुनरिया वो तो काये की जड़ाई थी,
किसकी वो लाल जिसने फाड़ के दिखाई थी
ऐसी सुना जैसे उस दिन सुनाई थी,
बंसी की धुन पे गाये सखियाँ,
झूमे ग्वाल बाल नाचे कन्हियाँ,
यशोदा के लाल मेरो नटखट कन्हियाँ,
ऐसी सुना जैसे उस दिन सुनाई थी,