सबसे ऊंची प्रेम सगाई
दुर्योधन के मेवा त्याग्यो, साग विदुर घर खाई |
जूठे फल शबरी के खाये, बहु विधि स्वाद बताई |
राजसूय यज्ञ युधिष्ठिर कीन्हा, तामे जूठ उठाई |
प्रेम के बस पारथ रथ हांक्यो, भूल गये ठकुराई |
ऐसी प्रीत बढ़ी वृन्दावन, गोपियन नाच नचाई |
प्रेम के बस नृप सेवा कीन्हीं, आप बने हरि नाई |
सूर क्रूर एहि लायक नाहीं, केहि लगो करहुं बड़ाई |