बतादे मुझे ओ जहां के मालिक

बतादे मुझे ओ जहां के मालिक क्या नजारे दिखा रहा है,
तेरे समंदर में क्या कमी थी के आदमी को रुला रहा है,
बतादे मुझे ओ जहां के मालिक क्या नजारे दिखा रहा है,

कभी हसाये कभी रुला दे ये खेल कैसा है तू बता दे ,
जिसे बनाया था अपने हाथो उसी को अब क्यों मिटा रहा है,
बतादे मुझे ओ जहां के मालिक क्या नजारे दिखा रहा है,

वो खुद ही गम से बुजा बुजा है तेरा फिर इस में कमाल क्या है,
के इक दीपक की राह में तू हजारो तूफ़ान उठा रहा है ,
बतादे मुझे ओ जहां के मालिक क्या नजारे दिखा रहा है,

किसी को रोटी न इक वक़्त की किसी को दी दोलते चमकनी,
कोई बनाया मेहलो का राजा कोई हाथो से सिर छुपा रहा है,
बतादे मुझे ओ जहां के मालिक क्या नजारे दिखा रहा है,
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