कोई पीवे संत सुझान,
नाम रस मीठा रे ॥
राजवंश की रानी पी गयी, एक बूँद इस रस का।
आधी रात महल तज चलदी, रहू न मनवा बस का।
गिरिधर की दीवानी मीरा, ध्यान छूटा अप्यश का।
बन बन डोले श्याम बांवरी लगेओ नाम का चस्का॥
नामदेव रस पीया रे अनुपम, सफल बना ली काया।
नरसी का एक तारा कैसे जगतपति को भाया।
तुलसी सूर फिरे मधुमाते, रोम रोम रस छाया।
भर भर पी गयी ब्रज की गोपिका, जिन सुन्दरतम पी पाया॥
ऐसा पी गया संत कबीर, मन हरी पाछे ढोले,
कृष्ण कृष्ण जय कृष्ण कृष्ण, नस नस पार्थ की बोले।
चाख हरी रस मगन नाचते शुक नारद शिव भोले।
कृष्ण नाम कह लीजे, पढ़िए सुनिए भागती भागवत, और कथा क्या कीजे।
गुरु के वचन अटल कर मानिए, संत समागम कीजे।
कृष्ण नाम रस बहो जात है, तृषावंत होए पीजे।
सूरदास हरी शरण ताकिये, वृथा काहे जीजे॥
वह पायेगा क्या रस का चस्का, नहीं कृष्ण से प्रेम लगाएगा जो।
अरे कृष्ण उसे समझेंगे वाही, रसिकों के समाज में जाएगा जो।
ब्रिज धूलि लपेट कलेवर में, गुण नित्य किशोर के गायेगा जो।
हसता हुआ श्याम मिलेगा उसे निज प्राणों की बाजी लगाएगा जो॥