एक दिन मैया पारवती भोले से लगी कहने
मुझको भी गढ़वा दो मेरे स्वामी थोड़े से गहने
मैंने लक्ष्मी को देखा मैंने इन्द्राणी देखि
तीनो लोको में जाकर रानी महारानी देखि
एक से बढ़कर एक सभी ने आभूषण पहने
मुझको भी गढ़वा दो मेरे स्वामी थोड़े से गहने
बात पारवती की सुनार भोले ने समझाया
एक औघड़ दानी के पास न होती माया
जो जैसे रहते है उनको वैसे दो रहने
क्यों जिद करती हो गौरा क्या रक्खा है गहनों में
चुटकी भस्मी देकर कुबेर को जाना
वह से इसके बराबर सोना लाना
चुटकी भर में क्या होगा गौरा सोच रही मन में
मुझको भी गढ़वा दो मेरे स्वामी थोड़े से गहने
एक पलड़े पर सोना एक पर भस्मी डाली
सोना रख डाला सारा पड़ला भस्मी का भरी
हुआ खजाना खाली कुबेर का कुछ न बचा घर में
मुझको भी गढ़वा दो मेरे स्वामी थोड़े से गहने
देख भस्मी की माया खुली गौरा की आँखे
माथे पे भस्म लगायी बोली भोले से आके
क्यों जाऊ औरो के खजाना भरा मेरे घर में
मुझको भी गढ़वा दो मेरे स्वामी थोड़े से गहने
भस्म की महिमा भारी रहेंगे भोले संग में
लगा के इस का टीका रहेंगे भोले के संग में वोह तो बसे हैं इसके कण कण में
मुझको भी गढ़वा दो मेरे स्वामी थोड़े से गहने
बहुत धन है दुनिया क्या रखा है मोह माया में
अपने घर में खुश रहना
संतोषी ही परम सुखी है देख लिया जग में
मुझको भी गढ़वा दो मेरे स्वामी थोड़े से गहने
एक दिन मैया पारवती भोले से लगी कहने
मुझको भी गढ़वा दो मेरे स्वामी थोड़े से गहने