वृन्दावन की इन कुंज गलिन में,

वृन्दावन की इन कुंज गलिन में,
खुशबु बिहारी जी की आती है,
मन में समा के मुझे मदहोश बना के,
दर पे बिहारी के ले जाती है,

एसी सुगंध छाई है चहू ओरी,
रसिको को खीच लेती बाँध प्रेम डोरी,
जग को बुलाये मेहक ये दिल में समाये,
प्रेमियों के मन को ये बाहती  है

रहता न ये दिल अब उदास है,
बांके बिहारी मेरे पास है,

धन्ये वृन्धावन में वहे फुरवैयाँ,
लता पता मेहके फूल और कलियाँ,
पुष्प पुष्प में हर कलि कली में,
दिव्य सुगंध भर आती है,
वृन्दावन की इन कुंज गलिन में

इक बार आके यहाँ करले विचरण,
कं कं सुगंदित है वातावरण,
खुद मेहको गे सब को मेह्कायगे,
ये खुशबु जीवन महकाती है
वृन्दावन की इन कुंज गलिन में

एसी सुगंध छाई है चारो ओरी,
रसिको को खीच लेती बांध प्रेमी गोरी,
जग को बुलाये मेहक ये दिल में समाये,
प्रेमयो के मन को ये बाहती है
वृन्दावन की इन कुंज गलिन में

जब से लगा है वृन्दावन का चस्का,
बन गए पागल पी के प्याला प्रेम रस का,
सुन लो मित्र कहे ये चित्र विचित्र,
ये जीवन पवित्र बनाती है,
वृन्दावन की इन कुंज गलिन में
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