प्रीति लगी तुम नाम की ,
पल बिसरैं नाहीं
नजर करो अब मेहर की,
मोहि मिलौ गुसाईं
बिरह सतावै हाय अब,
जिव तड़पै मेरा
तुम देखन को चाव है
प्रभु मिलौ सबेरा
नैना तरसैं दरस को,
पल पलक न लागै
दरदबंद दीदार का,
निसि बासर जागै
जो अबके प्रीतम मिलै ,
करूँ निमिष न न्यारा
अब कबीर गुरु पाँइया,
मिला प्रान प्यारा