साई की नगरी परम् अति सुंदर जहाँ कोई जान न पावे
चाँद सूरज जहाँ पवन न पानी, को सन्देश पहुचावे
दर्द ये साईं को सुनावे .. .
आगे चलों पन्थ नही सूझे, पीछे दोष लगावे
केहि विधि ससुरे जाऊं मोरि सजनी बिरहा जोर जरावे
बिषय रस नाच नचावे ...
बिनु सद्गुरु अपनों नहीं कोऊ जो ये राह बतावे
कहत कबीर सुनो भाई साधो सुपनन पीतम पावे
तपन जो जिय की बुझावे