श्री जी की होने को जी चाहता है,
राधे राधे गाने को जी चाहता है,
श्री जी की होने को जी चाहता है,
इसी आस पे राधा राधा पुकारे
कभी एक नजर श्यामा मुझे भी निहारे,
उसकी मस्ती में खोने को जे चाहता है,
श्री जी की होने को जी चाहता है,
जीवन बिताया सारा जग को रिजा के,
संतो की मस्ती देखि बरसाना आ के,
उसी रज में सोने को जी चाहता है,
श्री जी की होने को जी चाहता है,
जिनकी गरूरी में संत खेलते है,
आनंद में रहते हुए कष्ट झेलते है
मेरा उस खिलोने को जी चाहता है,
श्री जी की होने को जी चाहता है,