ग्यारस वाली रात को खाटू सुना ही रह जाएगा

क्या कभी सोचा था किसी ने ऐसा भी दिन आएगा
ग्यारस वाली रात को खाटू सुना ही रह जाएगा ,
क्या कभी सोचा था किसी ने ऐसा भी दिन आएगा

दसमी से ही खाटू नगरी दुल्हन सी सज जाती थी,
मंडल मंडल प्रेमियों की टोलियां सज जाती थी,
आज पड़ी गलियां वीरानी कीर्तन न हो पायेगा,
क्या कभी सोचा था किसी ने ऐसा भी दिन आएगा

बात हमारी मान ले बाबा अब तो नीले चढ़ आवो,
खोल के मंदिर के पट तेरे प्यारा मुखड़ा दिख लाओ,
महा मारी के इस संकट से बाबा तू ही बचाये गा,
क्या कभी सोचा था किसी ने ऐसा भी दिन आएगा

पका है विश्वाश हमे ये विनती न ठुकराएगा,
अगली ग्यारस से पहले ये संकट मिट जाएगा,
सिर पर भगतो के बाबा मोरछड़ी लहराएगा ,
क्या कभी सोचा था किसी ने ऐसा भी दिन आएगा
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