किसे दी गवाची मुंदरी, किसे दी गवाची फुलकारी
मेरा ता गवाचेया दिल, जेहडा ले गया श्याम मुरारी
वृन्दावन की गलिओं में मक्खाना दा चोर फिरे
सखिओं ने देख लिया, फिर दौड़ गया बनवारी
किसे दी गवाची मुंदरी...
रल मिल सखिया ने, यमुना ते गईआं ने
चीर चुरा के ले गया, कित्थे जावां मैं शर्म दी मारी
किसे दी गवाची मुंदरी...
सखिया तो पुछदे ने किसे दा मैं की चुकेया
दस्सो मेरी सखियो नी जेहडा शोर मचाया भारी
किसे दी गवाची मुंदरी...
किसे दा तू दूध लुटेया, किसे दा मख्खन लुटेया
किसे दा तू सूट चुकेय, किसे दी चुक लई साडी
किसे दी गवाची मुंदरी...