कान्हा मेरा चितचोर है चुराया मेरा मन
छीना है दिल का चैन बन गई मैं जोगन,
कान्हा मेरे मनमीत है वो ही मेरे प्रीतम,
बंधी शयामल से डोर टूटे न बंधन,
श्याम तो सब के प्रीत है क्यों लड़ती हो सखियन,
श्याम वसे हर दिल में फिर काहे की उलझन,
सवाली सूरत श्याम की लागे अति सुंदरम,
जाऊ मैं तुझपे वारि मेरे मनमोहन,
बलिभारी मैं श्याम पे कान्हा मन भावन,
ऐसे भाये मुझको जैसे प्यारा सावन,
श्याम तो सब के प्रीत है क्यों लड़ती हो सखियन,
श्याम वसे हर दिल में फिर काहे की उलझन,
करती श्याम का ध्यान मैं जपु नाम हर दम,
कान्हा बिना न कोई आना मेरे भगवान,
मूर्त उनकी देख के मेरे नैनं हर शन राम लला की करती मैं दर्शन,
श्याम तो सब के प्रीत है क्यों लड़ती हो सखियन,
श्याम वसे हर दिल में फिर काहे की उलझन,