मोरे कान्हा मैं बस इतना चाहू तेरे चरनो में मुक्ति पाऊ,
देह छुटे ये जब मुझसे मेरी मैं तुझमे ही आके समाऊ
मोरे कान्हा मैं बस इतना चाहू तेरे चरनो में मुक्ति पाऊ,
देह जब तक रहे नेह तेरा रहे तेरे दर्शन से रोशन सवेरा रहे
काम जो भी करू बस तेरे नाम से चैन मन को मिले बस तेरे ध्यान से
तू ही तू और किरपा तेरी चाहू
तेरे चरनो में मुक्ति पाऊ,
मोरे कान्हा मैं बस इतना चाहू तेरे चरनो में मुक्ति पाऊ,
मैल मूंदु अगर आँख खोलू अगर बस छवि तेरी सुंदर दिखाई पड़े,
होठ हर वक़्त कान्हा का ना ही रट्टे धुन मुरली की हर पल सुनाई पड़े
बंदनी रूह में हो तेरी भव से मैं कभी मुक्ति पाऊ,
मोरे कान्हा मैं बस इतना चाहू तेरे चरनो में मुक्ति पाऊ,
यग्य और प्राथना मैं नही जनाता तुम हो स्वामी मैं दासा यही मानता
अंजली भाव की कान्हा अर्पण करू
मेरे भावो की भगती को सवीकारना
बस इतनी किरपा तेरी चाहू,
तेरे चरनो में मुक्ति पाऊ,
मोरे कान्हा मैं बस इतना चाहू तेरे चरनो में मुक्ति पाऊ,