मैं रहू गी तेरी ही बन कर,
इस दुनिया में तुझसे बड कर शिव शंकर कोई दिखे नही
ना देव असुर न किनर तेरे समाने कोई टिके नही
शिव शंकर जैसा दिखे नही
तुम तीन लोक के मालिक हो मैंने तुमको अपना मान लिया
मैंने करी तपस्या वन जा कर के बनो तुम ही मेरे पिया
मैं पति तुम ही को मान चुकी तुम सा जान चुकी के खूब लगाये चक्र
इस दुनिया में तुझसे बड कर शिव शंकर कोई दिखे नही
तेरे शीश से गंगा बेहती है चंदा मस्तक पे विराज रहां
तिरशूल हाथ गल विष धर है डम डम डमरू बाज रहा
तुम जग से नाथ निराले हो पी जाते विष के प्याले
नही तेरी किसी से टकर मैंने खूब लगाये चक्र
इस दुनिया में तुझसे बड कर शिव शंकर कोई दिखे नही
राजा की तू राज दुलारी है हम तो साधू सन्यासी है
ना होगी संग गुजर गोरी हम मरघट जंगल वासी है
इस जोगी संग क्या पाओगी जीवन भर धक्के खाऊ गी
मैं खुद ही सोच समज कर आई हु आप तक चल कर
शिव शंकर कोई दिखे नही