सुन्दर कहलाते जो इस जग के नज़ारे हैं
तेरी चुनरी में हे माँ वो चाँद सितारे हैं
सुन्दर कहलाते जो ..........
पूरब में सूरज की लाली जब छाती है
लगता चुनरी ओढ़े तू धरती पे आती है
तेरी ही आभा के ये सारे उजारे हैं
सुन्दर कहलाते जो ..........
चमकीले ये मानिया फीकी पद जाती हैं
भाव से भरी चुनरी में जब सज जाती हैं
तारों के लटकन से झड़े इसके किनारे हैं
सुन्दर कहलाते जो ..........
जब मन तेरे दर्शन को मैया ललचाता है
चुनरी के रंग में ही चंदा रंग जाता है
आजा ओढ़न को माँ आकाश पुकारे है
सुन्दर कहलाते जो ..........