कृष्ण तुम्हारे ध्यान में आठो पेहर रहा करू

कृष्ण तुम्हारे ध्यान में आठो पेहर रहा करू
हर दम तुम्हारे ज्ञान के सागर में ही बहा करू

वाणी तुम्हारी हो मधुर मुरली के मीठे मीठे स्वर,
जादू का जिस में हो असर बंसी वही सूना करू
कृष्ण तुम्हारे ध्यान में आठो पेहर रहा करू

मोर मुकट हो पीत पथ कुंडल हो कानो में पड़े,
दर्शन मुझे दिया करो विनती जब मैं किया करू
कृष्ण तुम्हारे ध्यान में आठो पेहर रहा करू

रटना लगी है श्याम अब मुझको तुम्हारे दर्श की,
पडती नही जरा भी कल तुम ही तो हो मैं क्या करू
कृष्ण तुम्हारे ध्यान में आठो पेहर रहा करू

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