कान्हा मार गेयो पिचारी के राधा रंगा रंग हो गई
कहा छिप गयो कृष्ण मुरारी के राधा रानी तंग हो गई
खेलु खेलु मोरे कान्हा के संग होली
रंग दे रंग दे मोहे अपने ही रंग में
रे तेरे नाम की मैं चुनर ओडू,
कहा छिप गयो कृष्ण मुरारी के राधा रानी तंग हो गई
मैं छोड़ के लाज शरम को हजा तेरे तन मन में समा सजाऊ
ओ कान्हा मोरे कान्हा मत वाले तेरी इक अदा पे लुट जाऊ
मैं भूल के दुनिया सारी,
ओ कान्हा तेरे संग हो गई