रोए रोए दशरथ कहे यूं पुकार के

रोये रोये दशरथ कहे यू पुकार के
रामा रामा राम राम जाओ न छोड़ के

कैकई ने कैसा ये रिश्ता निभाया
अपने ही लोगो को किया है पराया
मेरे कलेजे जायो न मुँह मोड़ के

तेरा विरह प्यारे सह नही पयूंगा
बिन तुम्हारे राम जी नही पाऊंगा
तोड़ के वचन मेरा रहो तुम घर पे

मेरे गुरुवर क्यो न तुम समझाते
हक अपना रघुवर क्यो नही मांगते
हो जाये चाहे अयोध्या के टुकड़े

रानी कौशल्या अब तुम ही समझादो
देकर अपनी आन, सीने में छुपालो
नही तो रहोगी तूम विधवा बनके

राम है मर्यादा से बंधे हुए
कर्त्तव्य से अपने कभी न डिगे
जाते है वन को मान रखके

नीलम
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