मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे को नदान बदल के क्या होगा
अगर श्रधा नही विस्वाश नही भगवान् बदल के क्या होगा
जब कण कण में वो व्यापत है क्यों ढूंढे उसे मंदिर मस्जिद,
अपने भीतर तू झाँक जरा बेठा है तेरे मन के अन्दर
तू राम का कर या रहीम का कर गुणगान बदल के क्या होगा
अगर श्रधा नही विस्वाश नही भगवान् बदल के क्या होगा
क्या होगा ज्योत जलाने से अगर मन में ढोर अँधेरा है,
तू लाख बदल चोले तन पे मन का दर्पण तेरा चेहरा है
कर देगा व्यान हकीत्कत ये पहचान बदल के क्या होगा
अगर श्रधा नही विस्वाश नही भगवान् बदल के क्या होगा
पोंछे न किसी के आंसू अगर दुखियो के दर्द बटाये न.
किसी घ्याल मन के झख्मो पर तूने मरहम अगर लगाये न
फिर दास भला तेरी पूजा का समान बदल के क्या होगा
अगर श्रधा नही विस्वाश नही भगवान् बदल के क्या होगा