सुन राधिका दुलारी मैं तेरे द्वार का भिखारी

सुन राधिका दुलारी में, हूँ द्वार का भिखारी,
तेरे श्याम का पुजारी, एक पीड़ा है हमारी ,
हमें श्याम न मिला ...

हम समझे थे कान्हा कही कुंजन में  होगा,
अभी तो मिलन का हमने सुख नहीं भोगा

ओ सुनके प्रेम कि परिभाषा, मन में बंधी थी जो आशा,
आशा भई रे निराशा, झूटी दे गया दिलाशा
हमें श्याम न मिला...

देता है कन्हाई जिसे प्रेम कि दिशा,
सब विधि उसकी लेता भी है परीक्षा .....

ओ कभी निकट बुलाये, कभी दूरियाँ बढ़ाये,
कभी हषायें रुलाये छलिया हाथ नहीं आये
हमें श्याम ना मिला...

ओ अपना जिसे यहाँ कहे सब कोई, उसके लिए में दिन रात रोई,
ओ नेह दुनिया से तोडा, नाता संवारे से जोड़ा,
उसने ऐसा मुख मोड़ा हमें कही का ना छोड़ा
हमें श्याम ना मिला  ...
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