मेरे सिर पर तेरा साया
हर दुःख मेरा तुमने लिया है
इतना ज्यदा मुझको दिया है झोली में न समाया
मेरे सिर पर तेरा साया
तेरी किरपा से ही मेरी चलती है ये सांसे,
वर्ना मेरी इस दुनिया में रेह जाती बस यादे
इक ही पल में जाने तुममें कैसा करिश्मा दिखाया
मेरे सिर पर तेरा साया
पत्थर बन कर ठोकर खाता
भटक राह तब जगत में
कांटा बन कर सब की नजर में अटक रहा था जग में,
तेरा कर्म है शाम जो तुमने अपना मुझको बनाया
मेरे सिर पर तेरा साया
कैसे बुलाऊ एहसान तेरा तुम ने किया जो मुझपर
मुझको पारस में डाला है मैं तो था इक पत्थर
शर्मा को धरती में से उठा कर अम्बर तक पोहंचाया,
मेरे सिर पर तेरा साया