किसी से उनकी मंजिल का पता

कुर्बान में उनकी बक्शीश के ,मकसद भी जुबां पे लाया नहीं
बिन मांगे दिया और इतना दिया, दामन में हमारे समाया नहीं
जितना दिया सरकार ने मुझको, उतनी मेरी औकात नहीं
यह तो कर्म है उनका वरना, मुझ में तो ऐसी कोई बात नहीं

किसी से उनकी मंजिल का पता पाया नहीं जाता
जहां है वो, फरिश्तों का वहां साया नहीं जाता
किसी से उनकी मंजिल का ,,,,,

फकीरी में भी मुझको मांगने में शर्म आती है
तेरा बनके  अब मुझसे हाथ फैलाया नहीं जाता
किसी से उनकी मंजिल का ,,,,,

मेरे टूटे हुए पैरों तलब का मुझ पे एहसान है
तेरे दर से  अब उठ कर और कहीं जाया नहीं जाता
किसी से उनकी मंजिल का ,,,,,

मोहब्बत के लिए कुछ खास दिल मकसूस होते हैं
यह वो नगमा है जो हर साज पर गाया नहीं जाता
किसी से उनकी मंजिल का पता,,,,,,

सिंगर भरत कुमार दबथरा

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