मन के हारे हार है मन के जीते जीत,
मन ले जावे बैकुंठ में मन करावे फ़जीत,
मैं जानिया मन मर गया बल जल हुआ भभूत,
मन तो आगे खड़ा ज्यों जंगल में भूत।।
ए साधो भाई मनरो कहनो ना कीजै,
ए संतो मनरो कहनो ना कीजै,
दव में काठ कितो ही घालो ,
अगनि नाहीं पसीजे,
साधु भाई मनरो कहनो ना कीजै।।
मन ही माय अनीति कहीजै,
बड़ा बड़ा भूप ठगी जे,
जोधा जबर हार गया इन सूं,
पड्या कैद में सीजे,
साधु भाई मनरो कहनो ना कीजै
दव में काठ कितो ही घालो ,
अगनि नाहीं पसीजे,
साधु भाई मनरो कहनो ना कीजै।।
इण मन में एक निज मन कहिजे ,
जिणरो संग करीजे,
ऋषि मुनि उन अन्तर मन से,
साहब रे संग रहीजे,
साधु भाई मन रो कहनो ना कीजै।
दव में काठ कितो ही घालो ,
अगनि नाहीं पसीजे,
साधु भाई मनरो कहनो ना कीजै।।
मन को मोड़ करे कोई सुगरो,
जद थारो मनवो भीजे,
इड़ा पींगळा बोले जुगत से,
सुकमण रो घर लीजे,
साधु भाई मनरो कहनो ना कीजै।
दव में काठ कितो ही घालो ,
अगनि नाहीं पसीजे,
साधु भाई, मनरो कहनो ना कीजै।।
जीव पीवरी दूरी मेटो जद थारो मनवा भीजे,
साधू भाई, जद थारो मनवा भीजे,
मदन कहवे इण मन की मस्ती,
भले भाग है कीजै,
साधु भाई, मन रो कहनो ना कीजै,
दव में काठ कितो ही घालो ,
अगनि नाहीं पसीजे,
साधु भाई मनरो कहनो ना कीजै।।