कलयुग में आई यह कैसी घड़ी !
सबको आज अपनी अपनी पड़ी !!
लोभी भोगी बने हैं जोगी ,मोह माया के सभी रोगी ।
धर्म पे आई ये विपदा बड़ी...
.सबको आज अपनी अपनी ..
सच्चे संतों की न सुनवाई,मातपिता की सुधि बिसराई ।।
मर्यादा सारी रह गयी धरी......
सबको आज अपनी अपनी ....
वचपन खेलकूद में खोया,जवानी मोहनिशां में सोया ।।।
आया बुढापा तो आँख खुली ......
सबको आज अपनी अपनी....
शाश्वत मौका है समय न गंवाओ,रामनाम धन खूब कमाओ ।।।।
दौलत सारी रह जायेगी पड़ी .......
सबको आज अपनी अपनी
रचित- बालव्यास शाश्वत जी महाराज
श्रीरामकुटी,वृंदावन धाम