समझी लेवो रे मना भाई अंत नी होय कोई आपणा

समझी लेवो रे मना भाई ,
अंत नी होय कोई आपणा ।
समझी लेवो रे मना भाई ,
अंत नी होय कोई आपणा ।

आप निरंजन निरगुणा,
हारे सिरगुण तट ठाढा ,
यही रे माया के फंद में ,
नर आण लुभाणा ,
अंत नी होय कोई आपणा ।

कोट कठिन गड़ चैढ़ना,
दुर है रे पयाला ,
घड़ियाल बाजत घड़ी पहेर का ,
दुर देश को जाणा ,
अंत नी होय कोई आपणा ।

कलू काल का रयणाँ,
कोई से भेद नी कहेणा ,
झिलमील झिलमील देखणा ,
गुरु के शब्द को जपणा ,
अंत नी होय कोई आपणा ।

भवसागर का तीरणा
किस विधी पार उतरणा ,
नाव खड़ी रे केवट नही ,
अटकी रहयो रे निदाना ,
अंत नी होय कोई आपणा ।

माया के भ्रम नही भुलणा,
ठगी जासे दिवाना ,
कहे सिंगाजी पहिचाणजों
दरियाव ठिकाणाँ

अंत नी होय कोई आपणा ।

प्रेषक प्रमोद पटेल
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