ऐ दो जहाँ के मालिक मेरी खता बता दे
चरणों से दूर दाता तूने क्यों किया बता दे
ऐ दो जहाँ के मालिक...................
जीने को जी रहा हूँ लेकिन मज़ा नहीं है
तुझसे जो दूरियां है क्या ये सजा नहीं है
मुझे थाम ले दयालु ये फासले मिटा दे
ऐ दो जहाँ के मालिक...................
दुनिया की दौलतों की चाहत नहीं है दाता
चरणों में बस जगह तू देदे मेरे विधाता
हाथों को मेरे सर पे ज़रा प्यार से फिरा दे
ऐ दो जहाँ के मालिक...................
तेरे पथ पे चल रहा हूँ इक दिन तो तू मिलेगा
उम्मीद का ये दीपक एक दिन प्रभु जलेगा
तेरे हर्ष के ह्रदय का अँधियारा तू मिटा दे
ऐ दो जहाँ के मालिक...................