अब के तो काम दा म्हारी भी बनाओ ना बिगड़ी सबकी बनाई

अब  कह तो काम दहा म्हारी भी बनाओ ना बिगड़ी सबकी बनाई

बनी बनी का सब कोई साथी , बिगड़ी में कोई काम ना आवे
बिगड़ी मैं तो वहीं बनेगा, जाके सर पर दीनानाथ बहाई रे

भक्त पहलाद की ऐसी बनाई, अगनजाल से लियो बचाए
ध्रुव रे भगत को तेने, राज दिल आया रे

पाप की हत्या लखीना जावे, जो लिख दी तने दफ्तर चढ़ाई
ऊंचे जाते नीचे कुल प्यारे, करके गुमान तले तन क्यों बिगाड़ा रे

कह तो पंख गरुड़ का टूटिया, कै निंद्रा ने लिया जगाई
लाल दास दादू जी के सारणे, मोपे तो करता तेरी बन नहीं पाई रे

प्रेषक-आनंद डंगोरिया
रमेश दास उदासी (ग्रुप)
गंगापुर सिटी
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