मेरे सतगुरु दीन दयाल काग को हंस बनाते है
हंस बनाते है काग को हंस बनाते है,
मेरे सतगुरु दीन दयाल काग को हंस बनाते है
भरा याहा भगती का भंडार,
सतगुरु का दरबार लगा यहां सतगुरु का दरबार
शब्द अनमोल सुनाते है वो मन का भरम मिटाते है
गुरु जी सत का देते ज्ञान,
इशवर में हो ध्यान सब का इश्वर में हो ध्यान
वो अमिरत खूब पिलाते है वो मन की प्यास बूजाते है
मेरे सतगुरु दीन दयाल काग को हंस बनाते है
गुरु जी लेते नही कुछ धाम,
रखते भगतो का ध्यान वो खुद ही रखते भगतो का ध्यान
ये अपना मना लुटाते है सबी का कष्ट मिटाते है
मेरे सतगुरु दीन दयाल काग को हंस बनाते है