रो रो पुकारे तुमको कन्हैया,
तुम्हारी धरा पर कटती है गईयां।
देती हूं मैं जब दूध की धारा,
गऊ माता कहता है संसार सारा,
होती हूं बूढ़ी तो रहती ना मैया,
बेचता इंसा मुझको कसईयां,
रो रो पुकारे......
बांध के मुझको उल्टा झुलाते,
खौलते पानी से फिर नहलाते,
चलती है मेरे गले पे कटरिया,
आओ बचाओ मुरली धरईया,
रो रो पुकारे......
तुम गोकुल के जंगल में हमको चराते,
अपने ही हाथों से हमको सहलाते,
आज पुकारे तुमको वो मैया,
आकार बचाओ वंश कन्हैया,
रो रो पुकारे तुमको कन्हैया,
तुम्हारी धरा पर कटती है गईयां।