जो ध्यान तुम्हारा रखता है

सत्यम शिवम् सुंदरम संसार सारम,
अबयंकरम दुःख हरम करुणा अवतारम,
ज्योतृयम स्वयंभू प्रकतिक सुधारम,
शिवस्वारमि जगत्स्वामी निर्विकारंम।


इस जग से अलग रहकर रूहां,
उस रब से रूह रुहान करो,
जो ध्यान तुम्हारा रखता है,
तुम भी उसका कुछ ध्यान करो।


होकर विदह चुप चाप बहा,
उस शिव के नेह की धारा में,
आत्म पंछी की उड़ने दो,
जो बंद है तन की कारा में,
शिव परमात्मा के दर्श वरस का,
सरस सरस रसपान करो,
इस जग से अलग रहकर रूहां,
उस रब से रूह रुहान करो......


कर्मो के बंधन बंध जाते है,
जो जाने अनजाने में,
हैराजं योग की अग्नि सक्षम,
उनको भस्म कराने में,
अब डरदानी से वर पाकर,
निज का प्रताप कल्याण करो,
जो ध्यान तुम्हारा रखता है,
तुम भी उसका कुछ ध्यान करो......


प्रभु जिनसे खुद मिलना चाहे,
उन लोगों की किसमत क्या कहिये,
शिव परम पिता को बच्चो से,
कितनी है मोहब्बत क्या कहिये,
गुणभंडारी से गुण लेकर,
आओ खुद को गुणवान करो,
इस जग से अलग रहकर रूहां,
उस रब से रूह रुहान करो......
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