फोड़ दयी क्यो मोरी मटकिया

फोड़ दयी क्यों मोरी मटकिया।
राह में चलते चलते॥
कान्हा फोड़ दयी रे
मटकी फोड़ दयी रे।।

ओ मनमोहन मुरली वाले,
हमको छेड़ो ना।
जाने दे पनघट पे मोहे,
मटकी फोड़ो ना।
क्यूं तकरार करे मनमोहन
राह में चलते चलते।
कान्हा फोड़ दयी रे
मटकी फोड़ दयी रे।।

खींच ना चूनर मोरी संवरिया,
चूड़ी तोड़ो ना।
भोली भाली मैं हूँ गुजरिया,
बहियाँ मरोड़ो ना,
तीर चलाये क्यों नैनन के,
राह में चलते चलते।
कान्हा फोड़ दयी रे
मटकी फोड़ डाई रे।।

में तो ठहरी गांव की ग्वालिन।
तुम नंद के छोना।
जाए कहूंगी मां यशोदा से,
फिर मत कुछ कहना,
राजेन्द्र थक जाऊंगी लंबी,
राह में चलते चलते।
कान्हा फोड़ दयी रे
कान्हा फोड़ दयी रे।।

फोड़ दयी क्यों मोरी मटकिया।
राह में चलते चलते।
कान्हा फोड़ दयी रे
घागर फोड़ दयी रे
मटकी फोड़ दयी रे।।

गीतकार/गायक-राजेन्द्र प्रसाद सोनी
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