है कोई संत राम अनुरागी। जाकी सुरत साहब से लागी।
अरस परश पिवके रंग राती, होय रही पतिब्रता॥॥
दुतुयां भाव कछु नहीं समझै, ज्यों समुंद समानी सलिता॥॥
मीन जाय कर समुंद समानी, जहं देखै जहं पानी।
काल कीर का जाल न पहुंचै, निर्भय ठौर लुभानी॥॥
बांवन चंदन भौंरा पहुंचा,जहं बैठे तहं गंदा।
उड़ना छोड़ के थिर हो बैठा, निश दिन करत अनंदा॥॥
जन दरिया इक राम भजन कर, भरम बासना खोई।
पारस परस भया लोहू कंचन, बहुर न लोहा होई॥॥