बिन हरि नाम गुज़ारा नहीं रे

बिन हरि नाम गुज़ारा नहीं,
रे बाँवरे मन किनारा नहीं,
रे बावरे मन किनारा नहीं।।

नाव पुरानी चंचल धारा,
मौसम तूफानों का,
खेते खेते हिम्मत हारी,
डगमग डोले नौका,
प्रियतम को जो पुकारा नहीं,
रे बाँवरे मन किनारा नहीं,
रे बावरे मन किनारा नहीं।

फँसता क्यों जाता माया में तू,
ये है नागिन काली,
डस जाएगी बचकर रहना,
चौतरफा मुँह वाली,
फिर ये जनम दोबारा नहीं,
रे बाँवरे मन किनारा नहीं,
रे बावरे मन किनारा नहीं।

अब तो तू बस इस नैया को,
कर दे श्याम हवाले,
बस की बात नहीं बन्दे की,
वो दातार संभाले,
झूठा अहम गँवारा नहीं,
रे बाँवरे मन किनारा नहीं,
रे बावरे मन किनारा नहीं।

ये मौका भी चूक गया तो,
क्या है आनी-जानी,
श्याम बहादुर शिव जागे नींद से,
जीवन ओस का पानी,
फूल के होना गुब्बारा नहीं,
रे बाँवरे मन किनारा नहीं,
रे बावरे मन किनारा नहीं......
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