आओ भक्तो तुम्हे सुनाये महिमा मंगलवार की
पवन पुत्र बजरंग बलि श्री राम के सेवादार की।।
सातो दिन है पावन है लेकिन मंगल अति शुभकारी है,
विघना विनाशक कष्ट निवारक मंगल मंगल कारी है,
मंगल दिन है हनुमान का हनुमान सर्वोत्तम है,
जिनके ह्रदय में क्षड़ प्रति क्षण मर्यादा परुषोत्तम है।।
हनुमान की शरण जो आता मंगल मई हो जाता है,
कष्ट कलेश मिटे जीवन सुख वैभव वो पाता है सुखमय हो जाता है,
मंगल मई हनुमान की पावन कथा मैं सुनाता हूँ,
हनुमान के ह्रदय का उत्तम रूपम मैं दिखता हूँ।।
दिल्ली में एक धाम है पावन वीर बलि हनुमान का,
कष्ट निवारण करते है हनुमंत हर इंसान का,
सिद्ध पीठ है हनुमान की सिद्ध बलि कहलाते है,
वह पे आने वालो के कष्ट सभी मिट जाते है।।
मरघट वाले बाबा जी का किस्सा एक सुनाता हूँ,
भक्त एक था बाबा जी, उसके घर ले जाता हूँ,
बजरंगी का नाम भक्त का, दिल का भोला भाला था,
बजरंगी बजरंग बली की, सेवा करने वाला था।।
मंगल वार का व्रत रखता था, प्रीत दिन मंदिर जाता था,
भक्ति मे डूबा रहता था, भजन कीर्तन गाता था,
छोटा सा परिवार था उसका, पत्नी पुत्र और माता,
था अपने परिवार से या फिर, मरघट वाले से नाता था।।
बजरंगी का बालक भक्तों, सारे घर का तारा था,
सबके दिल की धड़कन था वो, सबका राज दुलारा था,
उमर अभी थी बाली उसकी, वो स्कुल मे पढ़ता था,
घर मे वो अक्सर ही अपनी, दादी के संग रहता था।।
बेटे का था नाम राम, पत्नी का राजकुमारी था,
पत्नी देखती घर के काम का, उसका पति पुजारी था,
बेटा पढ़ने मे आगे था, अच्छे नंबर लाता था,
घर मे भी पढ़ता रहता था, कही ना आता जाता था।।
बजरंगी प्रति दिन प्रातः, यमुना स्नान को जाता था,
करके वो स्नान नियम से, प्रति दिन मंदिर जाता था,
छुट्टी थी स्कूल मे इकदिन, बहुत बड़ा त्यौहार था,
हनुमान जी का दिन था वो उस दिन मंगलवार था।।
यमुना जी मे डुबकी लगाने, बजरंगी संग राम गया,
प्रातः काल पिता के संग मे, करने वो स्नान गया,
दोनों उतर गये यमुना मे, दोनों साथ नहाने लगे,
यमुना जी के पावन जल मे, दोनों डुबकी लगाने लगे।।
तेज धार थी यमुना जी की, बहुत अधिक गहराई थी,
फिसल गया था पाव राम का, मिट्टी में चिकनयी थी,
बजरंगी कुछ समझ ना पाया, डूब गया बेटा उसका,
आगे बढ़ा बचाने लेकिन, छूट गया बेटा उसका।।
राम राम कहके चिल्लाये, यमुना के तट बजरंगी,
कोई नहीं था आस पास में, किसे बुलाये बजरंगी,
छाती पिटे माया फोड़े, हालत हो गयी पागल सी,
रो रो आंसू सुख गये, आँखे हो गयी काजल सी।।
करुण पुकारे बजरंगी की, मंदिर से आ टकराई,
करुणामई मरघट वाले की, देखो भक्तो करुणाई,
करुणामई बजरंग बली का, चमत्कार दिखलाते है,
भेष बनाके मलाही का, यमुना के तट आते है।।
मलाही के भेष में बाबा, नाव चलाते आते है,
बजरंगी को रोते देखके, तुंरत उतर के आते है,
पूछ रहे है बजरंगी से, क्या हुआ क्यों तुम रोते हो,
यमुना मईया बह रही फिर क्यों, आंसुओ से मुँह धोते हो।।
मार दहाड़े छाती पीटे, बजरंगी कुछ बोले ना,
रोता जाये रोता जाये, भेद वो मन के खोले ना,
मल्हा बन बाबा बोले, रोने का कारण बोला,
बहते आंसुओ से मुँह अपना, धोने का कारण बोला।।
मल्लहा के कांधे पे सिर, रखके रोया बजरंगी,
मेरा राम डुबके मर गया, कहके रोया बजरंगी,
मल्लहा यूँ बोला हँसके, राम को कौन डुबाएगा,
पत्थर तेरे राम नाम के, राम को कोण डुबाएगा।।
बाबा रूपी मल्लहा वो, कूद गया फिर यमुना में,
पल की लगाये देर नहीं थी, कूद गया वो यमुना में,
बड़ी देर तक डूबा रहा ना, मल्लहा बाहर आया,
सोच सोच फिर अनहोनी के, बजरंगी था घबराया।।
कुछ पल के पश्चात राम को, लेकर निकला मल्लहा,
कंधे ऊपर उसे उठाकर, बाहर निकला मल्लहा,
बाहर लाकर उसे लटाया, धड़कन बंद हो गयी थी,
प्राणहिन हो गया था बालक, धड़कन बंद हो गयी थी।।
मरा देख अपने बेटे को, बजरंगी चिल्लाता है,
क्यों लाया मैं साथ राम को, बजरंगी पछताता है,
अगर बचा ना मेरा बेटा, कसम है मरघट वाले की,
प्राण त्याग दूंगा मैं अपने, कसम है मरघट वाले की।।
मरघट वाला खड़ा सामने, भेष धार मल्लाहे का,
देख रहा वो नब्ज राम की, भेष धार मल्लाहे का,
प्राण हीन हो चुका राम था, मल्लाहे ने जान लिया,
बजरंगी ने लाल को अपने, मरा हुआ ही मान लिया।।
प्रश्न खड़ा था राम नाम का, मरघट वाले के आगे,
बजरंगी चला प्राण त्यागने, मरघट वाले के आगे,
करुणामयी हनुमान के होते, भक्त हार जाता कैसे,
राम और हनुमान के होते, भक्त हार जाता कैसे।।
मरघट वाले बाबा जी ने, चमत्कार दिखलाया है,
बजरंगी के बेटे को फिर, हाथ में तुरंत उठाया है,
पलट के बजरंगी के लाल को, उसकी पीठ दबाते है,
निकलते पानी उसके पेट का, चमत्कार दिखलाते है।।
बजरंगी बेहाल खड़ा था, मरघट वाले से आगे,
नीचे उसका लाल पड़ा था, मरघट वाले के आगे,
चल गयी धड़कन खुल गयी आंखे, धीरे धीरे राम की,
बोलो मरघट वाले की जय, बोलो जय श्री राम की।।
उठके बैठ गया वो बेटा, डूबा था हैरानी में,
बोला मैं तो डूब गया था, यमुना जी के पानी में,
बजरंगी ने गले लगा के, बेटे को बतलाया है,
बन करके भगवान आगये, इन्होने तुझे बचाया है।।
पिता पुत्र उस मल्लहा के, दोनों पांव चूमते है,
नाम आपका क्या है भाई बारम्बार पूछता है,
मरघट वाला हसके बोला, तुमको तो मैं जानता हूँ,
भक्त हो तुम मरघट वाले के, भली भांति पहचानता हूँ।।
पिता पुत्र दोनों फिर वापस, लौट के घर को आते है,
जिन्हे भरोसा है बाबा पर, बाबा साथ निभाते है,
लिखी कथा सुखदेव ने भक्तों, अविनाश कर्ण गाते है,
लिखने में हुयी हो गलती कर जोड़ के शीश नवाते है।।
आओ भक्तो तुम्हे सुनाये महिमा मंगलवार की
पवन पुत्र बजरंग बलि श्री राम के सेवादार की.......