मैने रो-रो रुदन मचाया, तुम सुन लो गिरधारी
ओ मेरी भीगी.....मेरी भीगी रेशमी साड़ी, कब आओगे मुरारी।
मेरा अग्नि से जन्म हुआ है, द्रौपदी नाम धराई,
ये कैसा खेल रचाया, तुम सुन लो कृष्ण कन्हाई,
द्रुपद, द्रुपद की मैं जाई, तुम सुन लो गिरधारी,
मेरी भीगी रेशमी साड़ी, कब आओगे मुरारी।
तीर निशाने लागा मछली की आँख को छेदा,
अपना निशाना लगाया और जीत कर अर्जुन आया,
ये कैसी, ये कैसी लीला रचाई, तुम सुन लो कृष्ण कन्हाई,
मेरी भीगी रेशमी साड़ी, तुम सुन लो कृष्ण मुरारी।
मां को आवाज लगाई, हम भिक्षा लाए माई
बिना देखे बोली माई, तुम बांटो पांचों भाई
वो थी, वो थी द्रुपद दुलारी, मेरी भीगी रेशमी साड़ी…….
शकुनी ने चाल चली थी, तुम खेलो सारे भाई
द्रौपदी को दाँव पर लगाया, हारे थे पांचों भाई
ओ मेरी जान पे बन आई, मेरी भीगी रेशमी साड़ी………..
केश खींचकर लाया, दु:शासन आन गिराई
लगा खींचने साड़ी, मेरी लाज बचाओ गिरधारी
तुम आओ, तुम आओ कृष्ण मुरारी, मेरी भीगी रेशमी साड़ी…….
द्रौपदी ने टेर लगाई, मैं सभा मैं आन गिराई
आ जाओ कृष्ण मुरारी, मेरी सभा में लाज उतारी
मेरे आ गए, मेरे आ गए कृष्ण मुरारी, मेरी बढ़ गई रेशमी साड़ी………….
मैने रो-रो रुदन मचाया, तुम आ जाओ गिरधारी
ओ मेरी भीगी.....मेरी भीगी रेशमी साड़ी, तुम आओ कृष्ण मुरारी.......