तुम्हें ढूढ़े कहाँ गोपाल,
तुम तो खोये कुंज गलिन में...
पांव में पायल के स्वर,
न मुरली की ताने,
न गोपी हैं न ग्वाल,
तुम तो खोये कुंज गलिन में....
न कोयल की कूक सुनावे,
न झरनों का झर झर,
न दीखे कदम की डाल,
तुम तो खोये कुंज गलिन में....
न यमुना तट न वंशी वट,
न गोकुल का दीखे पनघट,
न कोई तलैया ताल,
तुम तो खोये कुंज गलिन में...
न राधा न ललिता दीखे,
न माखन की मटकी,
न"राजेन्द्र"नंद का लाल,
तुम तो खोये कुंज गलिन में....
गीतकार /गायक-राजेन्द्र प्रसाद सोनी