श्री जाहरवीर चालीसा

॥दोहा॥
सुवन केहरी जेवर सुत , महाबली रणधीर,
बंदौ सुत रानी बाछला , विपत निवारण वीर,
जय जय जय चौहान वंश , गोगा वीर अनूप,
अनंग पाल को जीतकर , आप बने सुर भूप।

॥चौपाई॥
जय जय जय जाहर रणधीरा , पर दुख भंजन बागड़ वीरा
गुरु गोरख का है वरदानी , जाहरवीर जोधा लासानी
गौरवरण मुख महाविशाला , माथे मुकुट घुँघराले बाला
काँधे धनुष गले तुलसी माला , कमर कृपाण रक्षा को डाला

जन्मे गोगावीर जग जाना , ईस्वी सन हजार दरमियाना
बल सागर गुण निधि कुमारा , दुखी जनों का बना सहारा
बागड़ पति बाछल नन्दन , जेवर सुत हरि भक्त निकन्दन
जेवर राव के पुत्र कहाये , माता पिता के नाम बढ़ाये

पूरण हुई कामना सारी , जिसने विनती करी तुम्हारी
संत उबार असुर संहारे , भक्त जनों के काज सँवारे
गोगावीर की अजब कहानी , जिसको ब्याही सिरियल रानी  
बाछल रानी जेवर राणा , महादुखी थे बिन संताना

भंगिन ने जब बोली मारी , जीवन हो गया उनको भारी
सूखा बाग पड़ा नौ लक्खा , देख देख जग को मन दुखा
कुछ दिन पीछे साधु आये , चेला चेली संग में लाये
जेवर राव ने कुआ बनवाया , उदघाटन जब करना चाहा  

खारी नीर कूप से निकला , राजा रानी का मन पिघला
रानी तब ज्योतिष बुलवाये , कौन पाप हम पुत्र ना पाये
कोई उपाय हमें बताओ , उन कहा गोरख गुरु मनाओ
गुरु गोरख जो खुश हो जाये , संतान पाना मुश्किल नाये

बाछल रानी गोरख गुण गावे , नेम धर्म को ना बिसरावे
करती तपस्या दिन और राती , एक वक़्त खाये रूखी चपाती
कार्तिक मास में करे स्नाना , व्रत एकादशी ना ही भूलाना
पूर्णमासी व्रत नहीं छोड़े , दान पुण्य से मुख नहीं मोड़े

चेलों के संग गोरख आये , नौलख में तम्बू तनवाये
मीठा नीर कूप का कीना , सूखा बाग हरा कर दीना
मेवा फल सब साधु खाये , अपने गुरु के गुण को गाये
औघड़ भिक्षा मांगने आये , बाछल रानी दुखड़े सुनाये

औघड़ जान लियो मनमाही , तप बल से कुछ मुश्किल नाही
रानी होवे मंशा पूरी , गुरु शरण है बहुत ज़रूरी
बारह बरस जपा गुरु नामा , तब गोरख ने मन में जाना
पुत्र देन की हामी भर ली , पूरणमासी निश्चय कर ली

काछल कपटिन गजब गुजारा , धोखा गुरु संग किया करारा
बाछल बनकर पुत्र है पाया , बहन का दर्द ज़रा नहीं आया
औघड़ गुरु को भेद बताया , तब बाछल ने गूगल पाया
कर प्रसादी दिया गूगल दाना , अब तुम पुत्र जनो मर्दाना

नीली घोड़ी और पंडितानी , लूना दासी ने भी जानी
रानी गूगल बाँट के खाई , सब बांझो को मिली है दवाई
नरसिंह पंडित नीला घोड़ा , कोतवाल भज्जु जना रणधीरा
रूप विकट धर सब ही डरावै , जाहरवीर के मन को भावै

भादों कृष्ण जब नोमी आई , जेवर राव के बाजी बधाई
विवाह हुआ गोगा भये राणा , संगल दीप में बने मेहमाना
रानी सिरियल संग फिरे फेरे , जाहर राज बागड़ का करे रे
अरजन सरजन काछल जने , गोगावीर से रहे वो तने  

दिल्ली गये लड़ने के काजा , अनंगपाल जो चढ़े महाराजा
उसने घेरी बागड़ सारी , जाहरवीर ना हिम्मत हारी
अरजन सरजन जान से मारे , अनंगपाल ने शस्त्र ही डारे
चरण पकड़कर पिंड छुड़ाया , सिंह भवन मांडी बनवाया

उसमे ही गोगावीर समाये , गोरख टीला धूनी रमाये
पुण्यवान सेवक वहाँ आये , तन मन धन से सेवा लाये
मनसा पूरी उनकी होई , गोगावीर को सुमिरे जोई
चालीस दिन पढे जो जाहर चालीसा , सारे कष्ट हरे जगदीशा
दूध पूत उन को दे विधाता , कृपा करे गुरु गोरखनाथा
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