भजन हरि का करले अभिमानी

भजन हरि का करले अभिमानी।
तेरी दो दिन की ज़िंदगानी।।

मोह माया में ऐसा अटका,
छोड़ के भव बंधन का खटका।
नर तन का न लाभ उठाया।
बीती जाए जवानी ।।
भजन हरि का करले अभिमानी।
तेरी दो दिन की ज़िंदगानी।।

गर्भ में हरि की शर्त कबूला,
बाहर आके सब कुछ भूला।
धरम करम को छोड़ के बंदे
करता रहा शैतानी।।
भजन हरि का करले अभिमानी।
तेरी दो दिन की ज़िंदगानी।।

सुंदर तन का मान किया रे,
तनिक न हरि का ध्यान किया रे।
"राजेन्द्र"तेरी सुंदर काया
माटी में मिल जानी।।
भजन हरि का करले अभिमानी।
तेरी दो दिन की ज़िंदगानी।।
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