अंगूठी मुझे सच बता दे

अंगूठी मुझे सच बता दे,
कहां पर तो छोड़े लक्ष्मण राम....

एक दिन जनकपुरी दरबार,
मार दिए सब राजा के मान,
धनुष के तोड़ने वाले, कहां पे तो छोडे लक्ष्मण राम,
अंगूठी मुझे सच बता दे.....

एक दिन गंगा तट के तीर,
केवट से मिल रहे दोनों वीर,
नाव के खेवन हारे, कहां पर तो छोड़े लक्ष्मण राम,
अंगूठी मुझे सच बता दे.....

एक दिन पंचवटी दर आन,
काट दिए सूपनखा के कान,
नाक के कार्टन हारे, कहां पर तो छोड़े लक्ष्मण राम,
अंगूठी मुझे सच बता दे.....

एक दिन पंपापुर में जाए,
मार दिया है बाली के बाढ़,
बाण के मारन हारे, कहां पर तो छोड़े लक्ष्मण राम,
अंगूठी मुझे सच बता दे.....

अंगूठी देख सिया बेचैन,
धड़क रहे दोनों नैनन से नीर,
पवनसुत खड़े लखामें, कहां पर तो छोड़े लक्ष्मण राम,
अंगूठी मुझे सच बता दे.....
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